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यदत्र॑ रि॒प्तꣳ र॒सिनः॑ सु॒तस्य॒ यदिन्द्रो॒ऽअपि॑ब॒च्छची॑भिः। अ॒हं तद॑स्य॒ मन॑सा शि॒वेन॒ सोम॒ꣳ राजा॑नमि॒ह भ॑क्षयामि ॥३५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। अत्र॑। रि॒प्तम्। र॒सिनः॑। सु॒तस्य॑। यत्। इन्द्रः॑। अपि॑बत्। शची॑भिः। अ॒हम्। तत्। अ॒स्य॒। मन॑सा। शि॒वेन॑। सोम॑म्। राजा॑नम्। इ॒ह। भ॒क्ष॒या॒मि॒ ॥३५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:35


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को चाहिये कि सब को आनन्द करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जैसे (अहम्) मैं (इह) इस संसार में (अस्य) इस (सुतस्य) सिद्ध किये हुए (रसिनः) प्रशंसित रसयुक्त पदार्थ का (यत्) जो भाग (अत्र) इस संसार ही में (रिप्तम्) लिप्त=प्राप्त है वा (इन्द्रः) सूर्य्य (शचीभिः) आकर्षणादि कर्मों के साथ (यत्) जो (अपिबत्) पीता है, (तत्) उसको और (राजानम्) प्रकाशमान (सोमम्) ओषधियों के रस को (शिवेन) कल्याणकारक (मनसा) मन से (भक्षयामि) भक्षण करता और पीता हूँ, वैसे तुम भी किया और पिया करो ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य अपनी किरणों से जलों का आकर्षण कर और वर्षा से सबको सुखी करता है, वैसे ही अनुकूल क्रियाओं से रसों का सेवन अच्छे प्रकार करके बल को बढ़ा कीर्ति से सब को तुम लोग आनन्दित करो ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः सर्व आनन्दयितव्य इत्याह ॥

अन्वय:

(यत्) (अत्र) अस्मिन् संसारे (रिप्तम्) लिप्तं प्राप्तम्। अत्र लकारस्य रेफादेशः (रसिनः) प्रशस्तो रसो विद्यते यस्मिंस्तस्य (सुतस्य) निष्पादितस्य (यत्) यम् (इन्द्रः) सूर्यः (अपिबत्) (शचीभिः) क्रियाभिः। शचीति कर्मनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.१) (अहम्) (तत्) तम् (अस्य) (मनसा) (शिवेन) मङ्गलमयेन (सोमम्) ओषधीरसम् (राजानम्) देदीप्यमानम् (इह) (भक्षयामि) ॥३५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाहमिहास्य सुतस्य रसिनो यदत्र रिप्तमस्तीन्द्रश्शचीभिर्यदपिबत्, तद् राजानं सोमं च शिवेन मनसा भक्षयामि, तथा यूयमपि भक्षयत ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा सूर्यः स्वकिरणैर्जलान्याकृष्य वर्षित्वा सर्वान् सुखयति, तथैवानुकूलाभिः क्रियाभी रसान् संसेव्य बलमुन्नीय यशोवृष्ट्या सर्वान् यूयमानन्दयत ॥३५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! सूर्य जसा आपल्या किरणांद्वारे जल आकर्षित करून वर खेचतो व परत पर्जन्यरूपाने वर्षाव करून सर्वांना सुखी करतो, तसेच योग्य प्रक्रिया करून रसांचे सेवन करून चांगल्या प्रकारे बल वाढवा व कीर्ती प्राप्त करून सर्वांना आनंदित करा.